दिल दा मामला बहुत नाजुक होता है । दिल से दिल की बात कहने को जुबां की आवश्यकता नहीं है । ये दिल ही है । जिसने कितने लैला मजनूं हीर रांझे शीरी फ़रहाद को अमर कर दिया । ऐसा कौन है । जो दिल के हाथों मजबूर न हो गया हो ? निश्चित ही कोई नहीं ।
बहुत दिन से मैं भी ब्लाग बनाने की सोच रहा था । आज बना ही डाला । ब्लाग ही वह माध्यम है । जहाँ दिल से दिल की बात सरलता से हो सकती है । आखिर कितने दिन आपसे दूर रह सकता हूँ । जब इंटरनेट पर बहुत से दोस्त भी मौजूद हों ।